अब विलुप्ति के कगार पर जा पहुंची हैं मछलियां

नरेंद्र देवांगन
भारत में जैव प्रणाली की भव्य किस्में हैं किंतु हमारे देश में जैव विविधता को बनाए रखने के लिए किसी तरह का संरक्षणवादी दृष्टिकोण कहीं नहीं दिखता। लोगों को रोजगार, स्वास्थ्य और एक्वेरियम में कैद हो कर दिल को सुकून देने वाली मछलियां भी अब विलुप्ति के कगार पर जा पहुंची हैं।
देश में बढ़ते औद्योगिकीकरण ने पिछले एक दशक में विभिन्न राज्यों की अनेक मछलियों की प्रजाति का अस्तित्व खत्म कर दिया है जबकि मछलियों की कई प्रजातियां अंतिम सांसें ले रही हैं लेकिन इन्हें बचाने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किए जा रहे हैं। मत्स्य वैज्ञानिकों के मुताबिक देश के विभिन्न प्रदेशों की नदियों और तालाबों में सैंकड़ों प्रकार की मछलियों की प्रजातियां पाई जाती थीं जिनमें से अब लगभग आधी प्रजातियां बची हैं। बची हुई आधी प्रजातियां भी सुरक्षित हैं, ऐसा नहीं है। उद्योगों के प्रभाव के कारण इनमें से कई पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है।
औद्योगिक कचरा व खतरनाक रसायन नदियों में छोड़ा जाता है जो मछलियों की मौत का कारण बन रहा है। कई राज्य सरकारों ने नदियों और बांधों का पानी उद्योगों को बेच दिया है जिसके परिणामस्वरूप मछलियों की कई प्रजातियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। पिछले एक-दो दशक से कई राज्यों में मछलियों की जान पर आफत बन आई है। इसका प्रमुख कारण उद्योगों से निकलने वाले रसायनों का नदियों में प्रवाह है। इसके साथ ही घरों में उपयोग होने वाले साबुन, खेत में डाले जा रहे खाद भी कुप्रभाव डाल रहे हैं। खेतों में इन दिनों ज्यादा मात्र में खाद का उपयोग किया जाता है जो बारिश के पानी से होते हुए नदियों में मिल जाता है।
मछलियों को जिंदा रहने के लिए नदियों में प्रति लीटर पानी में 6 मिलीग्राम ऑक्सीजन, 200 मिलीग्राम कठोरता, 400 मिलीग्राम सल्फेट, 20 मिलीग्राम नाइट्रेट, 2 मिली ग्राम फास्फेट, 20 मिलीग्राम नाइट्रोजन व 1.5 मिलीग्राम फ्लोराइड की मात्र होनी चाहिए। पानी का पीएच मान 6.5 होना भी जरूरी है लेकिन वर्तमान में नदियों के पानी में उक्त रसायनों की मात्र कहीं कम, तो कहीं अधिक है। इससे मछलियों के भोजन जैसे एनीलीड्स(केंचुआ) व काई जैसे निम्न जीव खत्म होते जा रहे हैं।
वैज्ञानिकों की मानें तो मछलियों की प्रजाति लगभग 20 वर्ष पहले सैंकड़ों थी। वैज्ञानिकों के सर्वे के अनुसार देश में 20 वर्षों में लगभग आधी प्रजाति की मछलियां खत्म हो चुकी हैं व कई प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। अगर समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो देश से देशी मछलियों की प्रजाति पूरी तरह से खत्म हो जाएगी।
मात्स्किी वैज्ञानिकों का मानना है कि नदियों में लगातार रासायनिक प्रक्रि या हो रही है जिसके कारण मछलियों पर असर पड़ रहा है। मछलियों के लिए पानी में भौतिक, रासायनिक व जैविक पदार्थों की सही मात्र आवश्यक है। इन दिनों नदियों में लगातार इन पदार्थों की मात्र बढ़ती जा रही है जिसके कारण मछलियां विलुप्त हो रही हैं। एक मात्स्किी वैज्ञानिक ने बताया कि देश की ज्यादातर नदियों का सर्वे करने के बाद यह निष्कर्ष सामने आया है कि नदियों के पानी में कार्बनिक पदार्थ बहुत बढ़ चुके हैं जिसके कारण देशी मछलियां, नदियों में कम होती जा रही हैं। कुछ मछलियों की प्रजाति अंतिम दौर में है। नदियों के पानी में कार्बनिक पदार्थ के बढऩे के कई कारण हैं।
सिर्फ भारत के ही नहीं, दुनियाभर के वैज्ञानिक जलचर जीवों पर छाए संकट के लिए चिंतित हैं। जलवायु परिवर्तन किस हद तक पूरे वातावरण को प्रभावित कर सकता है, इसका खुलासा दो वर्ष पूर्व किए गए एक शोध में पाया गया है। जिसमें कहा गया है कि समुद्रों के बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन से मछलियां आकार में सिकुड़ सकती हैं। यानी मछलियों का आकार छोटा हो सकता है।
समुद्र में पाई जाने वाली मछलियों की 600 प्रजातियों की कंप्यूटर मॉडलिंग पर आधारित एक कनाडाई अध्ययन के मुताबिक आने वाले 50 साल में मछलियों के शारीरिक भार में 14 से 20 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। ब्रिटिश कोलम्बिया विश्वविद्यालय का अध्ययन दुनिया में पहला ऐसा अध्ययन है जिसमें कहा गया है कि समुद्रों में पानी के बढ़ते तापमान व वहां कम होती ऑक्सीजन से मछलियों का आकार घट सकता है। ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ जर्नल के मुताबिक यूबीसी शोधकर्ताओं ने पाया कि मछलियों के अधिकतम शारीरिक भार में वर्ष 2000 से 2050 तक 14 से 20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। अध्ययनकर्ता विलियम चेंग ने कहा कि मछलियों के आकार में इतनी ज्यादा कमी देख कर हम खुद बहुत अचंभित हुए हैं। हम शायद समुद्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में एक बड़ी पहेली को छोड़ रहे थे।
सह अध्ययनकर्ता व यूबीसी की ‘सी अराउंड अस परियोजना’ के मुख्य शोधकर्ता डेनियल पॉली कहते हैं कि मछलियों का विकास ऑक्सीजन की आपूर्ति से प्रभावित होता है। श्री पॉली ने कहा कि मछलियों के लिए अपनी वृद्धि के लिए पानी से पर्याप्त मात्र में ऑक्सीजन प्राप्त करना एक सतत चुनौती है। मछलियों के आकार में बढऩे पर स्थिति और भी खराब हो जाती है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप गर्म व कम ऑक्सीजन वाले समुद्र में बड़ी मछलियों के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करना कठिन हो जाएगा। इसका मतलब है कि उनकी वृद्धि रूक जाएगी।
हाल ही में जारी किए गए एक रिपोर्ट में बताया गया है कि आने वाले समय में धरती के गरमाने यानी ग्लोबल वार्मिंग का असर नदियों, झीलों और समुद्र में रहने वाले जीवों के आकार पर पड़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलीय जीवों का आकार स्थल पर रहने वाले जीवों के मुकाबले 10 गुना तेजी से सिकुड़ रहा है। एक अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ है।
तापमान में वृद्धि के कारण अलवण जल (फ्रेश वाटर) और समुद्री जल में रहने वाली प्रजातियों का आकार असंगत तरीके से कम हो रहा है। क्वीन मेरी कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों ने इस खतरे के प्रति आगाह किया है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि तापमान में वृद्धि से जलीय जीवों की खाद्य-श्रृंखला भी प्रभावित हो रही है।
लंदन के क्वीन-मेरी स्कूल ऑफ बॉयोलॉजिकल एंड केमिकल साइंसेज से जुड़े प्रमुख अनुसंधानकर्ता डॉ.एंड्रयू हर्स्ट के अनुसार तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से पानी में रहने वाले जीवों का आकार 5 प्रतिशत तक कम हो सकता है जबकि स्थल पर रहने वाले समान आकार के जीवों के आकार में महज 0.5 प्रतिशत की कमी हो सकती है।
अनुसंधान में पाया गया है कि जीवों के आकार में इस बदलाव का एक कारण ऑक्सीजन भी है। विशेषज्ञों के अनुसार हवा की अपेक्षा पानी में ऑक्सीजन की उपलब्धता कम होने से जीवों के आकार पर असर पड़ रहा है।